इस प्यार का कोइ असर न हो पाएगा,
मालुम था, फ़िर भी कसर ढुँढ रहे थे!
हारे जो हम तेरी बेसब्री में,
वहाँ एक सब्र ढुँढ रहे थे!
दुश्मनी के इस अन्धेरी गली में,
रोशनी का बसर ढुँढ रहे थे!
झुलसते रहे अरमान गुरूर के आग में
ऐसे में ठंडी एक लहर ढुँढ रहे थे!
खामियाँ क्यों ना आये नज़र मेरे में
मेरे खामियों में वो अपनी फ़तह ढुँढ रहे थे!!
Prashant Jun 2015
Manila, Philippines
Post a Comment